सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, February 3, 2020

चुप्पी

अक्सर जब हमारी बातें होती हैं, एक अंतराल सा महसूस करता हूं। 
मानों एक अजीब सी चुप्पी होती है।उस चुप्पी में ना जाने कौन होता है? वो चुप्पी मुझे सूरज की उन किरणों जैसी लगती है जिनसे मैं बचना चाहता हूं, छोटे नए पौधे जैसा मुरझाने से बचना चाहता हूं। पर ये बार-बार आ जाते हैं।फिर कभी-कभी लगता है मेरी भितर एक सुनामी आ गई है जो सब कुछ बर्बाद कर देगा। शायद तुम्हें भी। यह चुप्पी बड़ी अजीब सी भावनाओं को जन्म दे जाता है। मानों कोई हमपे अपनी नजरें गड़ाए बैठा हो और यह चुप्पी उसकी नजर हो जो हमें लग गई।हर बार सोचता हूं कि आखिर कौन होता है हमारे बीच? जब यह अजीब सी चुप्पी होती है। फिर तुम कुछ बोल बैठती हो और सब कुछ बदल जाता है वो सूरज की जलती किरणें जिनसे मैं बचना चाहता हूं वह चांद की शितलता का रूप लेती है।सुनामी मानों समाप्त हो पत्थर से टकराकर बहते हुए नदी का रूप ले लेती है, जो सबको जीवन देती है।फिर यह बीच में दम घुटने सी चुप्पी क्यों आ जाती है? एक मध्यम हवा के चलने जैसा होता है जहां मैं खुद को पेड़ जैसा लहराता हुआ महसूस करता हूं।तुम्हारा कुछ कहना कुछ पहले क्यों नहीं होता? मैं इस अजीब सी चुप्पी को समाप्त करना चाहता हूं। इसे तुम्हारे शब्द भरें या मुस्कराहट फर्क नहीं पड़ता पर ये चुप्पी मुझे अकेला कर जाती है।

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