सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, April 4, 2020

तस्वीरों की अपनी अलग कहानी होती है जो समय का साथ पा और गहरी हो जाती है। यहां तो दोनों साथ मिलकर मुझसे बातें करतीं हैं।‌ और मैं सामने बैठा इनमें खोता जाता हूं। कभी इतनी गहराई से खो जाता हूं कि घड़ी की सेकंड सुई की तेजी से चलती टिक-टिक की आवाज मुझे उस सेकंड में घंटे जीतना स्थान और समय दे जाती है। https://itspc1.blogspot.com

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