सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 1, 2020

हां हम कैद हैं

सब बिल्कुल धुला-धुला सा है। बिल्कुल साफ। मैंने इतना साफ कभी नहीं देखा। पर आश्चर्य की बात यह है कि आज बारिश नहीं हुई। ना मैंने इसे साफ किया है। मैं तो बस बाकी सबकी तरह कमरे में कैद हूं। कहीं ये कमरे में बंद रहने का परिणाम तो नहीं? 
हां हम कैद हैं। हमें सजा मिली है अपने पापों की। और इन्हें इंसाफ मिला है। बहुत दिनों बाद। वो कहते है ना देर है, अंधेर नहीं। आशा करता हूं हमारी सजा जल्द पूरी हो। और इसे पूरा कर हम अच्छे इंसान बनें। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

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