मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Wednesday, June 3, 2020
क्या यहीं हमारी मान्यता थी?
क्या यहीं हमारी मान्यता थी? जो अभी तक सभी धार्मिक स्थल बंद थे। एक झूठा अपनापन था? जो हम पास होकर भी दूर हैं। क्या यहीं हमारे कर्म थे? जो प्राणदायनी मां गंगा के जल से सास्वत शराब की बूंदें है। हम तो बस मैं-मैं करते-करते मय तक आ पहुंचे। कुछ बूंदें हाथों में मलीं और कुछ घूंट पी बैठे। क्या हम सही थे? हमारा तरीका सही था? या हमनें कभी सोचा हीं नहीं, बस धुन में करते चले गए। जिसमें हमारा सर्वाथ और पाप दोनों शामिल होता रहा। जिसकी सजा हमें अब मिली है। क्या इतना काफी है? -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.Blogspot. Com
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