सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, July 15, 2020

भारत और किसान.... प्रेमचंद की गोदान

एक गरीब किसान होरी ने गरीबी की मार झेलता अपना गौ खोया,बैल की मृत्यु देखी, अपने पुत्र गोबर की विपन्नता देखी,गोबर के पुत्र चुन्नू को भूखे मिट्टी होते देखा,अपना घर बिकते देखा, सिलिया के बच्चे रामू को खो दिया, ब्याज चुकाता हुआ अपनी उम्र को हारते देखा, अपनी बेटी रूपा को समझौता की देवी बनते देखा। सोना की संपन्नता देखी, ऊंचे वर्ग के लोगों का लालच और असंतोष देखा। अपनी पत्नी धनिया का झुनिया के प्रति वात्सल्य देखा।
होरी कि पत्नी धनिया ने होरी को कर्ज से भरा संसार छोड़ स्वर्ग जाते देखा। मर्यादा,समाज के नाम पर सब कुछ हारते देखा। दो वक्त की रोटी जिसे नसीब न हो उसे मैंने गोदान करते देखा।

-गोदान

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