सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, July 11, 2020

सरकार, व्यवस्था,जनता

सरकारें सालों से वादा करती रही। सब कुछ बेहतर होने के। आगे और बेहतर करने की।
सरकार द्वारा किए गए विकास में सरकारी लोग की हिस्सेदारी बनीं। ऐसी हिस्सेदारी जिसमें आम जनता के लिए सुविधाएं कम और जनता के सेवक बनें सज्जन पूरा चप कर गए। 
बेशर्मी इतनी की पूछो तो फिर विकास की गिनती पढ़ बैठें। 
पर वह उस गिनती में नहीं आते। 
उनके लिए अलग सुविधाएं होती हैं। शायद किसी जिला अस्पताल में किसी सांसद का इलाज होता आम जनता के बीच। तो खबर मिलती विकास की।
सरकारी स्कूलों में बस्ता ढ़ोता उनका बच्चा समझ पाता की वास्तव में विकास किस बिमारी से झेल रहा है?
पर सब मुफ्त पाकर कहते हैं जनता को सब मुफ्त चाहिए। अरे साहब कभी विकास से हीं पूछ लिए होते वह कहां रह गया देश के आजादी के इतने साल बाद भी? कभी अपनी मुफ्त खोरी पर भी नजर डाल लेते जो अब तक चाभते आ रहे हो। 
लेकिन ऐसा करे कौन? आम जनता की बात करने वाले जनता के सेवक, न जाने कब बाघ बन बैठे इसका पता न जनता को चला न संविधान को। पर होता आया, हो रहा है और होता रहेगा। 
और जनता.......जनता लगी है लंबी कतार में कहीं। 
५ साल में एक बार वोट देने के लिए लगती है। फिर लगती हीं रहती है वो लाइन फिर न जाने कब वापस चुनाव की लाइन बन जाती है। राम जाने।
सुना है भगवान सब जानते हैं। पर भगवान भी अब इंतजार में हैं किसी वादे के।
और जनता कतार में हैं। चल रही है अपनी धीमी चाल से सरकार की ऊंगली पकड़।
जनता की हक की बात करने वाले उनका हक मार सबसे बड़े हकदार बन बैठे। 
और एक खास वर्ग इंतजार में है अब भी टीवी पर विज्ञापन देख उसके आसपास के जीवन जीने की लालसा में।

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...