वो सब झूठ है जिसने मुझे क्षणिक सुख प्रदान किया था।
मैं तो ठोकर की कलाइयां खाता चलना सीखा।
आंसूओं के घूंट पीकर रहना सीखा।
तानों की आवाज में अपने कानों को ढंकता हुआ नपा तुला बोलना सीखा।
आंखों का देखा सच भूल, झूठ में मुस्कुराना सीखा।
कुछ झूठ था आकाश में बादलों जैसा। कुछ सच था बादलों में पानी जैसा। कुछ मैं था प्रकृति में हवाओं जैसा। कुछ हवाएं थीं मुझमें सांसों जैसी।
एस सांस थी जो सच थी, सच है और सच रहेगी , सांस लेने तक।
फिर एक रोज सब बंद हो जाएगा।
बाकी सब क्षणिक रह जाएगा बस सच मेरे साथ चला जाएगा।
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