सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, July 22, 2020

बचपन

अक्सर सभी को कहते सुना है। बचपन जीवन का सबसे हसीन पल होता है। हम जी रहे होते हैं वो लम्हें जो वापस कभी लौटकर नहीं आते। मैंने तो कुछ भी वापस लौटकर आते नहीं देखा। और कुछ आया भी तो अधूरा हीं। अगर बचपन अनमोल है तो आजाद क्यों नहीं? जीवन चक्र का सबसे परितंत्र लम्हा है बचपन। स्वतंत्र तो जवानी है। पर अफसोस वापस वो भी नहीं आता। बचपन कभी अपनी जिंदगी नहीं जीता। वो जी रहा होता है जवानी का गुलाम बन, दूसरों की सोच की बनाई हुई जिंदगी।जहां उसके द्वारा उठाया हर कदम संस्कार की बेडी़यो में बंधा आजादी को ढूंढ रहा होता है। और जवानी उसे अपने तय सीमाओं में जीवन जीता देख प्रशन्न होता है।

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