सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, July 22, 2020

शनीचर

पहली बार जब मैं यह समझ पाया था कि यह बकरी है। उसी रोज किसी ने गांव में मुझसे कहा बकरी शनीचर होती है। इसे घर में नहीं रखते। बरकत कम हो जाती है। मेरा मन तब भी यह मानने को तैयार नहीं था और आज भी जबाव ना है।
तब मेरी नासमझी में मानवता था आज मेरी समझदारी में इसकी जरूरत है।
इसने गरीबों के पेट को अपनी दूध से सींच शरीर को बलिष्ठ बनाया। अपनी जान गंवा मांसाहारीयों की भूख मिटायी। इसके मल से हमारे खेतों में फसल लहलहाई। कभी धर्म के नाम पर तो कभी स्वाद के बहाने अपने अस्तित्व को खोती रही। 
और हमने एक प्रमाण पत्र तैयार किया जो हमारी पशुता को दर्शाता है।
-पीयूष चतुर्वेदी
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