पहली बार जब मैं यह समझ पाया था कि यह बकरी है। उसी रोज किसी ने गांव में मुझसे कहा बकरी शनीचर होती है। इसे घर में नहीं रखते। बरकत कम हो जाती है। मेरा मन तब भी यह मानने को तैयार नहीं था और आज भी जबाव ना है।
तब मेरी नासमझी में मानवता था आज मेरी समझदारी में इसकी जरूरत है।
इसने गरीबों के पेट को अपनी दूध से सींच शरीर को बलिष्ठ बनाया। अपनी जान गंवा मांसाहारीयों की भूख मिटायी। इसके मल से हमारे खेतों में फसल लहलहाई। कभी धर्म के नाम पर तो कभी स्वाद के बहाने अपने अस्तित्व को खोती रही।
और हमने एक प्रमाण पत्र तैयार किया जो हमारी पशुता को दर्शाता है।
-पीयूष चतुर्वेदी
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