गरीब बोझ उठाता है। वह बोझ जो एक साधारण व्यक्ति के बस में नहीं।
वह बोझ जो संपन्न व्यक्ति की शोभा नहीं।
मकानों के जंगल में अपने पूस का झोपड़ा लिए जीवन को दिशा देता है।
उस जीवन में चिंजे प्राप्त कछुए की भांति होती है और जाती हैं खरगोश सी।
खुशियां बरसात के मौसम सी आती हैं और दुख तड़पाती है गर्मी के तिखी घाम जैसी।
शारीरिक दबाव में हर सांसें लंबी होती हैं पर जीवन कम होता जाता है।
ज्ञान का आभाव,समाज का शोषण, सरकार के बहकावे, बेड़ीयों में बांधते हैं सपनों को।
सपने जो निंद से छोटी होती हैं।
हार जाती हैं सफलता और समृद्धि का ईष्या से भरा खेल।
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