सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, July 31, 2020

अधिकार

हर व्यक्ति अपने उम्र को पिछे छोड़ता हुआ कुछ दूर निकलता है। जहां व्यवहार बदलते हैं। प्यार बदलता है। पसंद, नापसंद की रूखाई मन को विचलित करती है। विपन्नता का डर बैठ जाता है। अधिकार का जन्म होता है। पर शायद अधिकार का जन्म तो हमारे जन्म के साथ हीं हो जाता है लेकिन सभ्यता की परछाईं और उम्र का अंतर कभी इसे पूरी तरह से अपनाने नहीं देता। कोई कह जाता है, कोई सह जाता है तो वहीं कोई कुछ किए या कहे बिना रह जाता है।‌ सच तो यह है कि कुछ कहने या करने की जरूरत हीं नहीं। हम सभी अपने अधिकारी हैं। और हम सबका बराबर अधिकार है उन सब पर जो हमारा है।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...