सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, July 16, 2020

स्पर्श

एक मीठा स्पर्श अहसास कराता है हमें, हमारे जीवन के मूल्यों का।
कोई हमारे हाथ थाम लेता है।
कोई गालों को सहलाता है।
कुछ माथे को प्रेम भरे होंठों से चूम जाता है।
कोई हमारे पैरों को छूकर छोड़ जाता है जीवन के अग्रिम मार्ग।
और हर एक स्पर्श चेहरे पर कुछ नया छोड़ जाता है।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

असफलता और लालच के क्षणों में उनकी आलोचना में भी शामिल रहा हूं- पीयूष चतुर्वेदी

यह मेरे लिए दिसंबर २०१५ के प्रथम सप्ताह को जवान होते हुए देखना है। विवाह की लंबी तैयारी ने उन्हें शारीरिक रूप से थोड़ा थका दिया ...