सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, August 10, 2020

सूखा हृदय

किसी व्यक्ति का हृदय तब सूख जाता है जब कोई अपना हक से मन की बात नहीं करता। जब रिश्ते बस औपचारिक रह जाते हैं।
तब जीवन सावन में भी पतझड़ होने की कल्पना कर बैठता है। 
मन कुछ ढूंढता है लेकिन वहां सिर्फ चंद कौवे पानी की तलाश में भटक रहे होते हैं। पर प्यास ना कौवे की बुझती है ना प्यासे हृदय इंसान की। 
सारा जल किसी के झूठे शान, अहम और दलीलों को सींच रहा होता है। 
कुछ लोग उसे आत्मसम्मान का नाम देते हैं कुछ उसे एकांत की खोज कहते हैं। पर शायद वह अंजान होते हैं उस आपदा से जो उन्हें सींचते हुए बाढ़ का रूप ले बैठती है।
सूखे हृदय का क्या है आज कितना भी सूखा क्यूं न हो समय उसे राहत जरूर दे जाएगा। परंतु बाढ़ सब कुछ बहा ले जाता है। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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