किसी व्यक्ति का हृदय तब सूख जाता है जब कोई अपना हक से मन की बात नहीं करता। जब रिश्ते बस औपचारिक रह जाते हैं।
तब जीवन सावन में भी पतझड़ होने की कल्पना कर बैठता है।
मन कुछ ढूंढता है लेकिन वहां सिर्फ चंद कौवे पानी की तलाश में भटक रहे होते हैं। पर प्यास ना कौवे की बुझती है ना प्यासे हृदय इंसान की।
सारा जल किसी के झूठे शान, अहम और दलीलों को सींच रहा होता है।
कुछ लोग उसे आत्मसम्मान का नाम देते हैं कुछ उसे एकांत की खोज कहते हैं। पर शायद वह अंजान होते हैं उस आपदा से जो उन्हें सींचते हुए बाढ़ का रूप ले बैठती है।
सूखे हृदय का क्या है आज कितना भी सूखा क्यूं न हो समय उसे राहत जरूर दे जाएगा। परंतु बाढ़ सब कुछ बहा ले जाता है।
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