एक बेटी अपनी मां की आंखों में देखती है बीते दिनों की संघर्ष और भविष्य में किए जाने वाला त्याग।
और खुद के लिए एक नजरिया। जिससे शायद उसे भी देखा जाएगा।
माथे की लकीरों में ढूंढती है मां से नाराज़ बैठे लोगों के नाम।
माथे पर रखी बिंदी सीखती है उसे संस्कार और परम्पराओं का सदाचार।
जिसे वह अपनाती रही हर-बार।
घूंघट से छिपे हुए चेहरे से समझ पाती है समाज की सोच।
सजल नेत्रों में देखती है उसकी ममता और सिखती है उससे अनुराग।
होंठों की हल्की मुस्कान में देखती है मां का मुस्कुराता हुआ बचपन।
पैरों की पायल में दिखती है उसे मां की मर्यादा।
गले का हार उसे सिखाता है पतिव्रत धर्म।
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