सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, August 20, 2020

"कोई देख रहा है"

कोई है जो सब देखता है।
देख रहा है। 
पर नहीं देख पाया अपने पति के प्रति एक नारी का समर्पण। 
उसकी भूख-प्यास में पति की कम होती सांसें।
अनौपचारिक व्रत पालन में छुपा त्याग।
कुछ लोग दिन गिनते रहे, कुछ पैसे, कुछ ने उसकी आराधना में कुछ जाता वापस आता देखा खुद में।
पर कोई है हमारे ऊपर, निचे या दाएं बाएं कहीं जो सब देखता है। 
वो नहीं देख पाया भविष्य की विपदाओं को। 
बस निर्जिव पड़ा देखता रहा कुछ ऐसा जो उसे देखना ना था या कलयुग की काली पट्टी बांध मान्यताओं को भूल गया।
लेकिन कोई कष्ट की बात नहीं। मनुष्य जाति का संतोष सब भूल जाएगा और कोई फिर वो सब देखेगा जो वह देख नहीं सकता।
-पीयूष चतुर्वेदी

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