कोई है जो सब देखता है।
देख रहा है।
पर नहीं देख पाया अपने पति के प्रति एक नारी का समर्पण।
उसकी भूख-प्यास में पति की कम होती सांसें।
अनौपचारिक व्रत पालन में छुपा त्याग।
कुछ लोग दिन गिनते रहे, कुछ पैसे, कुछ ने उसकी आराधना में कुछ जाता वापस आता देखा खुद में।
पर कोई है हमारे ऊपर, निचे या दाएं बाएं कहीं जो सब देखता है।
वो नहीं देख पाया भविष्य की विपदाओं को।
बस निर्जिव पड़ा देखता रहा कुछ ऐसा जो उसे देखना ना था या कलयुग की काली पट्टी बांध मान्यताओं को भूल गया।
लेकिन कोई कष्ट की बात नहीं। मनुष्य जाति का संतोष सब भूल जाएगा और कोई फिर वो सब देखेगा जो वह देख नहीं सकता।
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