सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, August 3, 2020

आस-पास

कुछ चिजें हमारे जीवन में हमेशा से रहतीं हैं। कुछ चिजों को हम प्राप्त करते हैं। यह सभी रूप में है। 
जो हमें यूं ही मिल जाता है हम अक्सर उसका सम्मान नहीं करते। हमारे सम्मान न करने का नतीजा यह होता है कि वह हमसे बहुत दूर चला जाता है। इतनी दूर जितनी दूर घर के सामने वाली सड़क। 
जिस सड़क के अंत तक जाना असंभव है। 
और जो हम प्राप्त करते हैं,कमाते हैं अपने कर्म,भावना,विवेक और व्यवहार, समर्पण से वह हमेशा हमारे साथ रहता है। और हम उसे खोने से डरते हैं। हम उसे अपने जीवन के हर पल में साथ देखना चाहते हैं। जैसे दीवारों पर रेंगती छिपकली। रोशनदान से भीतर आती धूप।
यह सच है हमें उसी का असल महत्व पता होता है जो हमनें कमाया है। 
पर क्या वह महत्वपूर्ण नहीं जो हमेशा से हमारे साथ था जिसे हमें ढूंढने की कभी जरूरत हीं नहीं पड़ी?
मेरे विचार में वह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है परंतु हमारी सोच का समीकरण कभी इसका सही उत्तर नहीं दे पाया। 
हम अब भी भटकते हुए ढूंढ रहे हैं वहीं सब जो हमारे पास है यह कहते हुए, तुम हो कौन??
-पीयूष चतुर्वेदी

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