सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, August 28, 2020

कच्चे मकान

कच्चे मकानों में दीवारें जितनी कमजोर होती हैं। उतने हीं मजबूत होते हैं रिश्ते। 
कमजोर होते छत से ताकती धूप लाती है कुछ धूल के कणों के साथ नया खेल।
शहर बने, इमारतें बनीं पर कच्चा मकान हमेशा बना रहा घर।
घर-घर के खेल में, दादी की कहानी।
मां की थपकी, बाबा की बैठक और पिताजी की सेवा यह सब होते हैं घर की चार दीवारें। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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