भटक रहा था अब तक कहीं किसी राह पर।
किस राह पर ठीक-ठीक याद नहीं।
पर भटक रहा था किसी की खोज में।
किसकी? ठीक-ठीक याद नहीं।
मैं शांत था। बिल्कुल मौन। उसके पिछे का कारण बस मैं अब तक इतना हीं जान पाया कि सब कुछ खोता आया मैं अब तक।
जैसे चांद छिन लेता है तारों की चमक।
जैसे सूरज की तिखी धूप में छीन जाता है पंछियों की आजाद उड़ान।
कड़वाहट से भरा मेरा जीवन खेल रहा था त्रासदी के साथ लुका छुपी का खेल।
ठीक वैसे हीं जीवन रूपी रास्ता मुझे ले जा रहा था कहीं दूर।
कहां? मुझे नहीं पता।
बस इतना ज्ञात था कि मेरे पैरों में छाले थे। माथे पर चिंता की लकीरें थी। आंखों में एक थकी हुई रोशनी थी।
फिर मैं तुमसे मिला।
तुमसे मिलते हीं लगा, मानो जैसे मुझे मेरे जीवन का स्वाद मिल गया हो।
मैंने कभी जीवन को चखा नहीं। पर तुम्हें देख तुमसे बातें कर लगा जैसे वो मीठा ही होता होगा। बिल्कुल शहद की भांति। इसके पहले मैं जो कुछ भी जीता आया वह जीवन था या सपना? मैं इस बात से अब तक अंजान हूं।
इस भेंट के बाद पैर के वो सारे छाले समाप्त हो गए। जैसे मैं पुष्पों से बनी सड़क पर चलता उसके रस इक्ट्ठे करने लगा हूं। और आंखों ने कुछ ऐसा देख लिया हो जैसे सारा मधु मेरे जीवन में प्यार भरी मुस्कान धर मेरे जीवन को अपने मीठास में डुबो रहा हो।
जैसे जीवन को उसका स्वाद मिल गया हो।
No comments:
Post a Comment