सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, September 4, 2020

आश्चर्य

बचपन सही-गलत की सीमाओं से मुक्त होता है। सीमाएं तो बड़े बनाते हैं बच्चों के लिए। बच्चा तो हर कदम आश्चर्य के साथ आगे बढ़ाता है। जहां रंग बिरंगे कंचे भी उसे हीरा लगता है। चिकने पत्थर में उसे जीने का आनंद मिल जाता है। उसकी कोई इच्छा नहीं होती बस आश्चर्य होता है। बड़े उस आश्चर्य को समाप्त करते हैं। शायद वो आश्चर्य से भरा बचपन हम हमेशा अपनी मुठ्ठी में छुपाए बड़े होते तो हम हमेशा प्रसन्न रहते। हमारे आश्चर्य को हमेशा से किसी की अहंकार भरी सोच और लालच भरी आकांक्षाओं ने मारा है। बचपन कभी नहीं जाता हमारे भीतर से बस आश्चर्य समाप्त हो जाता है। फिर हम सारी वहीं ढूंढते हैं जो हमारे किसी अपने ने हमसे छीन लिया था। आश्चर्य का समाप्त होना बड़े होने की प्रथम सीढ़ी है।
-पीयूष चतुर्वेदी

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