इतनी थकान तब भी नहीं हुई जब अपने बेटे की उज्जवल भविष्य के लिए अपनी आंखों की रोशनी कम करता कच्ची सड़कों पर साइकिल दौड़ाया करता था। दिन भर की मेहनत में बच्चे का आराम अपने कपोल पर छुपा लिया था मैंने। आंखें हर रोज एक सपना देखा करती थी जिसमें उसका भविष्य रौशन दिखता था। इतनी थकान मुझे कभी नहीं थी जितनी आज इन पक्की सड़कों को टकटकी लगाए निहारते आंखें थक जाती हैं।
उसी बेटे के इंतजार में जिसके लिए शायद मैं जिम्मेदारी की जंजीरों में बंधा स्वयं को धोखा दिया। कास मैं इतना ताकतवर होता कि रोक पाता पक्की सड़कों का निर्माण।
क्या पता शायद भूल गया हो लड़का मेरी ओर आते रास्ते को।
अब तो सब पक्का हो चला है ना। बस रिश्तों की दीवारें ढहती जा रही हैं।
और मैं एक कमजोर दीवार सा टूटता जा रहा हूं।
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