भारत देश में हर गरीब के पास शक्कर जितनी मिठास है। और प्रत्येक गरीब गुण की भांति गुणकारी है।
स्वयं की भूख मिटायी नहीं जाती पर मेहनत तमाम लोगों के जीवन को आसान बनाती है।
जिनके इर्द-गिर्द हमारे देश की लोकतांत्रिक चिटियां उनके मजबूरी का गंध पाकर उन्हें घेरती हैं। फिर लूटती हैं उनके मिठास को। उनके सरलतम विश्वास को। करती हैं उनका रसपान और छोड़ जाती हैं चूर्ण की तरह धूल की कणों में उनको बिखरा हुआ।
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