सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, September 22, 2020

लोकतांत्रिक चिटियां

भारत देश में हर गरीब के पास शक्कर जितनी मिठास है। और प्रत्येक गरीब गुण की भांति गुणकारी है।
 स्वयं की भूख मिटायी नहीं जाती पर मेहनत तमाम लोगों के जीवन को आसान बनाती है।
जिनके इर्द-गिर्द हमारे देश की लोकतांत्रिक चिटियां उनके मजबूरी का गंध पाकर उन्हें घेरती हैं। फिर लूटती हैं उनके मिठास को। उनके सरलतम विश्वास को। करती हैं उनका रसपान और छोड़ जाती हैं चूर्ण की तरह धूल की कणों में उनको बिखरा हुआ। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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