सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, September 28, 2020

सवाल

फिल्में समाज का आईना होती हैं। 
और कलाकार? आज इस सवाल का ज़बाब ढूंढना आवश्यक है। 
क्योंकि देश के तमाम ज़रूरी मुद्दों से अधिक जरूरी नशे की मूलभूत विषयों पर चर्चा हो रही है। 
पर ज़बाब बहुत पहले से हमारे आसपास नंगा घूम रहा था और हम अंधे बनें उसी के साथ टहल रहे थे। 
पर हमारी नाक पर लगी पट्टी मिडिया आज प्राइम टाइम में निकाल रही है। 
हर गांव में आसानी से उपलब्ध नशे की चर्चा देश का गंभीर मुद्दा बना हुआ है। 
कोई इस मादक पदार्थ को मानसिक तनाव के नाम पर सुरूक रहा है। 
कोई बम-बम भोले बोल कर आशीर्वाद के बहाने गटक रहा है तो वहीं कोई शौक़ बड़ी चिज होती है के मुहावरे तले माल फूंक रहा है। 
और यह सब शदियों से चला आ रहा है। 
मुझे लगता है इस ग़लत कृत्य के ऊपर लगाम और जांच जरूरी है। बहस नहीं। बहस तो जनता की असल मुद्दों की होनी चाहिए। मगर अफसोस मेरा देश बदल रहा है।
-पीयूष चतुर्वेदी

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