सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, September 28, 2020

मनुष्यता

हमारा अबोध होना हीं हमारे मनुष्यता को सहेज कर रखता है। 
अबोध की अधिकता मनुष्यता को जन्म देती है। 
चिजों का बोध होना हीं मनुष्यता को प्रभावित करती है।
बोध से विचार और विचार से विकार की उत्पत्ति होती है। 
कुछ पल के लिए अपने ज्ञान को अपने बचपन वाली नासमझ सी मुठ्ठीयों में छुपा देना चाहिए। और मनुष्यता का स्वागत करना चाहिए।
-पीयूष चतुर्वेदी

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