हमारा अबोध होना हीं हमारे मनुष्यता को सहेज कर रखता है।
अबोध की अधिकता मनुष्यता को जन्म देती है।
चिजों का बोध होना हीं मनुष्यता को प्रभावित करती है।
बोध से विचार और विचार से विकार की उत्पत्ति होती है।
कुछ पल के लिए अपने ज्ञान को अपने बचपन वाली नासमझ सी मुठ्ठीयों में छुपा देना चाहिए। और मनुष्यता का स्वागत करना चाहिए।
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