जय जवान
जय किसान........
शास्त्री जी का यह कथन आज लोप हो चुका है।
२५ रूपया किलो बिकने वाला मक्का सीनेमा हाल में घुसते हीं ग्राम की मात्रा में सैकड़ों में बिकता है। तरक्की साफ नजर आती है शोषण के रूप में।
अन्नदाता स्वयं भूखा है।
किसी समय बहादुर जी के कहने पर समस्त देशवासियों ने एक वक्त का भोजन छोड़ दिया था देश की गरिमा और आत्मसम्मान के लिए।
और आज शोषित हो रहा समाज लड़ रहा है अपने भूख की लड़ाई।
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