सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, October 2, 2020

जय जवान जय किसान

जय जवान 
जय किसान........
शास्त्री जी का यह कथन आज लोप हो चुका है।
२५ रूपया किलो बिकने वाला मक्का सीनेमा हाल में घुसते हीं ग्राम की मात्रा में सैकड़ों में बिकता है। तरक्की साफ नजर आती है शोषण के रूप में।
अन्नदाता स्वयं भूखा है। 
किसी समय बहादुर जी के कहने पर समस्त देशवासियों ने एक वक्त का भोजन छोड़ दिया था देश की गरिमा और आत्मसम्मान के लिए। 
और आज शोषित हो रहा समाज लड़ रहा है अपने भूख की लड़ाई।
-पीयूष चतुर्वेदी

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