सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, October 26, 2020

रावण, व्रत और भारतवर्ष

बीते वर्षों की तरह इस वर्ष भी हमनें एक कठपुतली सा बनाए हुए रावण को आग के हवाले कर दिया। 
पहले उसे सलिके से बनाया उसका श्रृंगार किया उसे अपनी कारिगरी से अलंकृत किया जगह भी तय कि और सजीव की मेहनत से बनाए निर्जिव को लगा दी आग। 
यह रावण कितना जला वो किसी ने नहीं देखा। 
पर जो कुछ भी जला हमारा बनाया हुआ किसी के श्रम से बनाया और सजाया हुआ जला। कुछ पटाखों के फटने की आवाज आई मानों उसकी हड्डियां चटक रही हों,बच्चे हंसे और आ गया राम राज्य। 
ऐसे राम राज्य की स्थापना हम शदियों से करते आ रहे हैं और यह आगे भी होगा। 
हर वर्ष होगा। 
परमेश्वर के नाम पर हम अन्न का त्याग करेंगे।
अपनी सुविधा के अनुसार निर्दोषों की बलि देंगे। और वो सब अपने पास छुपाए बैठे रहेंगे जिसका असल में त्याग करना था जिसकी बलि देनी थी। 
अहंकार, लोभ, क्षुद्रता, स्वार्थ से स्वयं को भीतर से सजाए और मूर्ती के समक्ष अपनी भौतिकता को दर्शाते भगवान को धोखा देने का असफल प्रयास करेंगे। 
शायद यहीं भारत का अस्तित्व है। अन्न का त्याग समाज की नजर में तभी सार्थक है जब हमारे पास खाने को हो और हम उसका त्याग करें। 
अन्न है हीं नहीं और हम भूखे हैं तो उसकी कद्र ना भगवान को है ना संसार को है।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...