बीते वर्षों की तरह इस वर्ष भी हमनें एक कठपुतली सा बनाए हुए रावण को आग के हवाले कर दिया।
पहले उसे सलिके से बनाया उसका श्रृंगार किया उसे अपनी कारिगरी से अलंकृत किया जगह भी तय कि और सजीव की मेहनत से बनाए निर्जिव को लगा दी आग।
यह रावण कितना जला वो किसी ने नहीं देखा।
पर जो कुछ भी जला हमारा बनाया हुआ किसी के श्रम से बनाया और सजाया हुआ जला। कुछ पटाखों के फटने की आवाज आई मानों उसकी हड्डियां चटक रही हों,बच्चे हंसे और आ गया राम राज्य।
ऐसे राम राज्य की स्थापना हम शदियों से करते आ रहे हैं और यह आगे भी होगा।
हर वर्ष होगा।
परमेश्वर के नाम पर हम अन्न का त्याग करेंगे।
अपनी सुविधा के अनुसार निर्दोषों की बलि देंगे। और वो सब अपने पास छुपाए बैठे रहेंगे जिसका असल में त्याग करना था जिसकी बलि देनी थी।
अहंकार, लोभ, क्षुद्रता, स्वार्थ से स्वयं को भीतर से सजाए और मूर्ती के समक्ष अपनी भौतिकता को दर्शाते भगवान को धोखा देने का असफल प्रयास करेंगे।
शायद यहीं भारत का अस्तित्व है। अन्न का त्याग समाज की नजर में तभी सार्थक है जब हमारे पास खाने को हो और हम उसका त्याग करें।
अन्न है हीं नहीं और हम भूखे हैं तो उसकी कद्र ना भगवान को है ना संसार को है।
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