सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, November 1, 2020

शिकार

खादी में जनता के सेवक हैं।
और खांकी में जनता के नौकर।
फिर जनता क्या है? कौन है? 
जनता शिकार मात्र है। 
जिसका शिकार,शिकारी भेष बदलकर हर बार कर जाता है। 
और जनता वापस हिरन की तरह चुनाव रूप जंगल में घूमने निकल जाती है। और फिर कोई शिकारी हनन कर लेता है उसके स्वतंत्रता, संपन्नता और आत्म सम्मान का। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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