सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, November 14, 2020

कोई बोल रहा है

समीर कोई बोल रहा है।
जोर-जोर से तेज आवाज में बोल रहा है। 
लोग तालियां बजा रहे हैं... कोई बोले जा रहा है। 
वो थकता नहीं बोले जा रहा है...देखो ना समीर कोई झूठ बोल रहा है। 
हमारे आसपास लोग सच सुन नहीं रहे या कोई बोल नहीं रहा का ज़बाब अब मिलने लगा है समीर। 
नहीं नम्रता कोई नहीं है वहां। सब तुम्हारा वहम है। 
नहीं समीर कोई बोल रहा है बड़ी सफाई से एक बड़े से मंच से एक बड़ी सी भीड़ में जिस भीड़ से उठते हर झूठ को एक बड़े से माध्यम ने सच में बदल दिया है। 
मुझे इस झूठ में घुटन हो रही है समीर मेरी सच की सांसें मरती जा रही हैं। 
नहीं नम्रता... विन्रम बनों माना सब झूठ है पर सच भी तो है। 
नहीं समीर झूठ हवा में फ़ैल चुका है त्रासदी लिए किसी वायरस की तरह...।
जहां सच..झूठ पर जाकर खत्म हो रहा है और झूठ कहीं दूर सत्ता की कुर्सी पर। 
नहीं नम्रता ऐसा पहले भी तो था पहले भी तो झूठ हवा में फैली है हमनें उसमें सांसे लीं हैं। 
हां समीर लेकिन अब झूठ जिंदगी से बड़ी हो चुकी है। 
चलों हम कहीं दूर चलें समीर।
तुम हवा में घुल जाओ और मैं तुम में विनम्रता से मिल जाऊं। 
और वहां चल चलें जहां जीवन बड़ा हो झूठ नहीं।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...