समीर कोई बोल रहा है।
जोर-जोर से तेज आवाज में बोल रहा है। 
लोग तालियां बजा रहे हैं... कोई बोले जा रहा है। 
वो थकता नहीं बोले जा रहा है...देखो ना समीर कोई झूठ बोल रहा है। 
हमारे आसपास लोग सच सुन नहीं रहे या कोई बोल नहीं रहा का ज़बाब अब मिलने लगा है समीर। 
नहीं नम्रता कोई नहीं है वहां। सब तुम्हारा वहम है। 
नहीं समीर कोई बोल रहा है बड़ी सफाई से एक बड़े से मंच से एक बड़ी सी भीड़ में जिस भीड़ से उठते हर झूठ को एक बड़े से माध्यम ने सच में बदल दिया है। 
मुझे इस झूठ में घुटन हो रही है समीर मेरी सच की सांसें मरती जा रही हैं। 
नहीं नम्रता... विन्रम बनों माना सब झूठ है पर सच भी तो है। 
नहीं समीर झूठ हवा में फ़ैल चुका है त्रासदी लिए किसी वायरस की तरह...।
जहां सच..झूठ पर जाकर खत्म हो रहा है और झूठ कहीं दूर सत्ता की कुर्सी पर। 
नहीं नम्रता ऐसा पहले भी तो था पहले भी तो झूठ हवा में फैली है हमनें उसमें सांसे लीं हैं। 
हां समीर लेकिन अब झूठ जिंदगी से बड़ी हो चुकी है। 
चलों हम कहीं दूर चलें समीर।
तुम हवा में घुल जाओ और मैं तुम में विनम्रता से मिल जाऊं। 
और वहां चल चलें जहां जीवन बड़ा हो झूठ नहीं।
  
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