सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, December 17, 2020

घटनाएं

कुछ अघटित घटनाओं के घट जाने का डर और चंद घटित घटनाओं के घट जाने का अफसोस हमेशा मुझे विचलित करता है।
मेरे भीतर का समंदर ऊंची लहरें मारता है। उन लहरों में मैं हर रोज डूबता हूं और सांसों के फूलते हीं बाहर निकल आता हूं। 
मौत के आसपास कहीं बीतता हर पल मुझे जीवन के और करीब लाता है। 
वो जीवन जिसे वास्तव में जीना है मैं उसे हर रोज चखता हूं। हर पल एक नई यात्रा करता हूं।
चखता हूं उसके स्वाद को और हर स्वाद में मौत का मिश्रण पाता हूं। वह मौत जो है कहीं किसी जगह इंतजार में। खाली हाथ बैठी एक लंबे इंतजार में। जो किसी रोज़ मुझसे मेरी यात्रा के दौरान टकराएगी।
जिस रोज वह इंतजार समाप्त होगा जीवन का स्वाद नमकीन हो जाएगा बिल्कुल मेरे भीतर बसे समंदर की तरह और मैं कुछ क्षण के लिए पूर्णतः उसमें डूब जाऊंगा। 
फिर मन शांत होगा...
शरीर शिथिल...
मस्तिष्क शून्य...
मैं संपूर्ण मौन...
और आस-पास एक लंबा एकांत होगा।
फिर शुरू होगा नया जीवन।
-पीयूष चतुर्वेदी

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