सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, December 14, 2020

बनारस

जीवन जीना कैसे है यह सिर्फ बनारस आकर समझा जा सकता है। तमाम दिक्कतों और झंझावात के मध्य भी कैसे जीवन के हर में बहते जाना है यह बनारस सीखाता है। 
यातायात की शोरगुल में मंदिर की घंटी कैसे भक्ति रस में डुबा जाती है। सड़कों पर पड़ी गंदगी के मध्य हर अंतराल पर खुशबू बिखेरती ना-ना प्रकार की अगरबत्तियों की सुगंध कैसे तनाव मुक्त कर जाती है। टोक्यो का सपना देखती आंखें कैसे गंगा की लहरों में खुद को बहा जाती है। बनारस को ज्यादा समझने वाले लोगों को ठेठ बनारसी "भाग भोंसड़ी के" कह कैसे चुप करा जाता है। कैसे कोई अंध भक्त भी खुले में शौच कर दांत चिआरता हुआ देश भक्ति के नारे लगा देता है। 
कैसे बनारसी पान की पीक अपने रंग बिखेरती है?
कैसे बनारस यह सब रोज जीता है?
कैसे बनारस इसे हर रोज संभालता है संवारता है?
यह सब बनारस में है और बनारस में सब है। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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