जीवन जीना कैसे है यह सिर्फ बनारस आकर समझा जा सकता है। तमाम दिक्कतों और झंझावात के मध्य भी कैसे जीवन के हर में बहते जाना है यह बनारस सीखाता है।
यातायात की शोरगुल में मंदिर की घंटी कैसे भक्ति रस में डुबा जाती है। सड़कों पर पड़ी गंदगी के मध्य हर अंतराल पर खुशबू बिखेरती ना-ना प्रकार की अगरबत्तियों की सुगंध कैसे तनाव मुक्त कर जाती है। टोक्यो का सपना देखती आंखें कैसे गंगा की लहरों में खुद को बहा जाती है। बनारस को ज्यादा समझने वाले लोगों को ठेठ बनारसी "भाग भोंसड़ी के" कह कैसे चुप करा जाता है। कैसे कोई अंध भक्त भी खुले में शौच कर दांत चिआरता हुआ देश भक्ति के नारे लगा देता है।
कैसे बनारसी पान की पीक अपने रंग बिखेरती है?
कैसे बनारस यह सब रोज जीता है?
कैसे बनारस इसे हर रोज संभालता है संवारता है?
यह सब बनारस में है और बनारस में सब है।
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