वो बरकाकाना में स्टाल वाला जिसके पास से गुजरते हीं मुझे आवाज दी आइये साहब लिजिए कुछ। स्वास्थय ठीक ना होने के कारण मैंने इडली मांगा लेकिन छोला होने के कारण मैंने इनकार कर दिया चटनी उपलब्ध नहीं थी उसके पास लेकिन वह पास वाली दुकान से टमाटर की चटनी ले आया। पैसे देते वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे इसकी किमत सिर्फ प्रेम है पैसा मात्र माध्यम। वो पानी वाला जो हर बार पानी के 5 ₹ बाद में दिया करता था वह आज पानी का बोतल देने से पहले हीं मुझे 5 ₹ और नरम मुस्कान दे गया। मुझे नहीं पता वह इतना विश्वास से कैसे भरा था लेकिन मैंने हर बार उसे 20 ₹ का नोट दिया है यह कारण हो सकता है।
ऐसे अनगिनत किस्से जो कल घटे वह मात्र घटना नहीं है एक जीवन है जिसे जिने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।
कैसे एक बड़ी सी गाड़ी अपने भितर अलग-अलग रंग-ढंग, बोल-चाल, भाव-स्वभाव एवं विभिन्न स्थान के लोगों को साथ लाकर पृथक करती है।
कैसे सीधी चलती ट्रेन किसी बड़े से जंक्शन पर थोड़ी देर के लिए ठहरती है और फिर उल्टे दिशा में दौड़ने लगती है। और देखते-देखते अब वो उल्टा सीधा लगने लग जाता है। यह सब एक जीवन है। ट्रेन वास्तव में एक ग्रह है जहां हम कुछ समय साथ बीताते हैं। अच्छा बुरा सहते हुए।
बच्चों की रोने की आवाजें, बूढ़ों के खांसने की, जवानों के खर्राटों की, महिलाओं की बेहिसाब बातों की भीड़ में हम कुछ समय के लिए शून्य हो जाते हैं। हम उन्हें ना अपनाते हुए भी अपना लेते हैं।
इस छोटे दौर का समझौता जब इतमिनान लिए बड़ा हो जाएगा हम वास्तव में जीना सीख जाएंगे। जब हम सब कुछ अपनाना सीख जाएंगे।
-पीयूष चतुर्वेदी
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