सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, December 21, 2020

कितना सरल, कितना कठिन

कितना सरल है कठिन के पिछे चलते जाना?
कितना कठिन है सरल हो जाना?
कितना सरल है मनुष्य कहलना?
कितना कठिन है मनुष्य हो जाना?
कितना सरल है श्वास लेना?
कितना कठिन है हर सांस में जीते जाना?
कितना सरल है मैं हो जाना?
कितना कठिन है हम हो जाना?
कितना सरल है सपनों में खो जाना?
कितना कठिन है निंद में गुम हो जाना?
कितना सरल है चलते जाना!
कितना कठिन है इस लंबी भाग दौड़ में ठहर जाना?
कितना सरल है मेरा तुम हो जाना?
कितना कठिन है तुम्हारा मैं हो जाना? 
कितना अजीब है ऐसा कुछ भी ना हो पाना।
-पीयूष चतुर्वेदी

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