आसमान हर पल बदलता है। वह दूसरे पल पहले जैसा कभी दोबारा नजर नहीं आता। बादल हर रोज तितली बनकर उड़ता है। पक्षियां बादलों में लुक्का छुप्पी का खेल खेलती हैं। बादल हारी हुई लड़ाइयां लड़ता है पर्वतों से। हवाओं में तैरता है। मैं आकाश का बदलना किसी मुंडेर पर खुद को टिकाए हर रोज देखता हूं।
मुझे आसमान का बदलना हमेशा से पसंद है। नदी भी हर दिन बदलती है लेकिन नदी को बदलते हुए देखने का संयम मुझमें हमेशा से नहीं रहा। और अब भी अपना सारा संयम आकाश में उड़ते पंछियों में गुम होते देखता हूं। नदी किनारे जाकर मैं मात्र कुछ चिकनी पत्थरों को पानी पर फ़ेंक तैराता हूं और कुछ पत्थरों को जेब में रखकर घर वापस चला आता हूं।
परंतु आकाश में बादलों को उड़ता देख मेरे भीतर का छुपा एक पक्षी बार-बार उड़ने को होता है।
इस ऊहापोह में मैं हर रोज पक्षी बनता हूं और नदी का पानी चख आकाश में उड़ता अपने मुंडेर पर वापस बैठ जाता हूं।
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