मैंने #विद्या #भारती, #राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ के विद्यालय #shaktinagar से शिक्षा प्राप्त की है। जहां दिन की शुरुआत सभागार में साथ बैठ प्रार्थना सभा से होती थी। हमारे प्रधानाचार्य माननीय श्री Raj Bihari Vishwakarma जी द्वारा संस्कार,सदाचार, अनुशासन का छोटा वक्तव्य होता था। हमारा विद्यालय हमारे लिए सिर्फ इमारत और ज्ञान प्राप्ति का उदगम नहीं था। ज्ञान का मंदिर था। हमें प्राचार्य जी सदैव इसका अहसास कराते थे। मेरे साथ मुस्लिम विद्यार्थी भी पढ़ते थे। Md Irshad Khan , Irshad Ahmed ने हमारे साथ सरस्वती वंदना गायी है। स्मृति शेष #सहनवाज ने तबले को थाप दी है। सबने रक्षाबंधन से लेकर दीपावली तक विद्यालय में साथ मनाया है। उन्होंने कभी कोई भेद नहीं किया ना हीं उनके अभिभावक ने। मैनें कभी ईद नहीं मनाई। हां इरसाद के हाथ की सेवईया जरूर खाई है। गुलरेज था तबरेज थे। ऐसे तमाम और भी जो हमारे साथ थे। उन्होंने वसंत पंचमी मनाई है। अब वह विद्यालय भी अंग्रेजी युग में प्रवेश कर रहा है।
मेरे कालेज के दोस्त इरफान और हकीम ने हमारे साथ होली के रंगों में रंगे हैं। चंदन है इस देश की माटी भी गाया है। उन वर्षों में जब अयोध्या खून से रंगी जा चुकी थी। मध्यांतर में भोजन मंत्र का जाप कर भोजन ग्रहण किया है। इरसाद को आज भी श्लोक याद है। हमारा घर जाना भी वन्दे मातरम गाने के बाद हीं होता था। मेरे तमाम मुस्लिम दोस्तों ने सनातन धर्म के प्रति जो आस्था दिखाई है वो मैं उनके धर्म के प्रति नहीं दिखा पाया। उस वक्त उन्हें किसी ने आतंकी कहकर नहीं पुकारा। शायद यह हमारे प्रार्चाय जी की उपलब्धी थी या समय का सदाचार जिसमें राजनितिक व्यक्ति के लिए ज्यादा स्थान नहीं था। आज हमारे मध्य राजनीति घुस आई है। अगर वह पल हम आज दोबारा जिना चाहें तो वर्तमान समय में जिना असंभव है। शायद हम साथ पढ़ ही ना पाएं। और साथ आ भी गए तो हम लड़ कर मर जाएंगे या मार दिए जाएंगे।
-पीयूष चतुर्वेदी
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