सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, February 26, 2021

धूप और उम्मीद

सूरज की धूप और उम्मीद दोनों मेरे कमरे में एक साथ प्रवेश करती है। रोशनी को एक नजर देख मैं मुस्कुराता हूं और उम्मीद को खुद में समेटे हुए अपना सारा आलस्य बिस्तर से झाड़ देता हूं। रात को देखा हुआ सारा स्वपन अपने हथेलियों में ढूंढ़ता हूं। लेकिन वहां कुछ भी नहीं मिलता सिवाय बेतरतीब रेखाओं के। मोबाइल को कुछ मिनट ताकता हूं, ढूंढ़ता हूं किसी अपने के कुछ खास संदेश लेकिन सिर्फ सरकार के माहौल बनाने और झूठ फैलाने वाले ट्वीट और मेरे संपादक मित्र की लिखने के मामले में कुछ सलाह आंखों में उतरते हैं। मैं उन सारे ट्वीट को अनदेखा कर सोनी फूआ को दो शब्द का मैसेज भेजता हूं। क्यों भेजता हूं? यह ठीक-ठीक पता नहीं। लेकिन मैसेज लिखता हूं तो लगता है कुछ अच्छा कर रहा हूं। कुछ अच्छा लिख रहा हूं। मेरे लिए लिखना, बोलने से ज्यादा सरल रहा है। मैं जो कुछ भी बोल नहीं पाता लिख देता हूं। और अब मैं उसका आदि हो चुका हूं। थोड़ा देर हो जाने पर ऐसा लगता है जैसे धूप ने शरीर को झकझोरा नहीं है। घर पर भैया से और मां से छोटी बात करता हूं। हां सब ठीक है इस से ठीक बात मैं आजतक नहीं कर पाया। शायद लिखना होता तो मैं बहुत कुछ लिखता लेकिन अब लंबा संदेश कोई पढ़ता नहीं और चिट्ठी-पत्री का दौर कहां रह गया। फोन रखने के बाद सोचता हूं अरे! वो बात तो कहा हीं नहीं जो कहनी थी चलो फिर बात होगी तो कहूंगा कि टालने की कोशिश में वह बात हमेशा मुझ तक हीं रह जाती है। दोपहर धीरे-धीरे आगे बढ़ती है उसके साथ मैं हल्की थकावट महसूस करता हूं। जब मैं पूरी तरह थक जाता हूं तो शाम हो जाती है। कभी-कभी मुझे लगता है शाम मेरे थकने से होती है। वहीं थकान लिए मैं अभिषेक को फोन करता हूं। कुछ लंबी बातें होती हैं। उन लंबी बातों में सबसे लंबी बातें होती हैं और कोई नया समाचार? और यह बार-बार दोनों तरफ से दुहराई जाती है अंत में ठीक है कि चुप्पी सब शांत कर देती है। सोने से पहले सोनू का फोन मुझे हर रोज आता है। वो कहता है मुझसे बात करना उसे अच्छा लगता है। मेरी जानकारी उसे सार्थक महसूस कराती है। मेरा मजाक उसे घंटों हंसाता है। और मैं भी अपना सारा झूठ सुनाकर हरा महसूस करता हूं। लगभग हर रोज यहीं होता है। मैं फिर एक करवट लेता हूं सो जाता हूं। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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