सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, March 18, 2021

कितनी फकिरी है?


जब देश बेरोजगारी के परेशानियों से जूझ रहा था उसी वक्त देश में अनगिनत संख्या में चौकीदार की भर्ती निकली थी। 
मैंने वो फ़ार्म नहीं भरा। क्यों का ज़बाब बस इतना है कि मैं आंख मूंद कर चौकीदारी नहीं कर सकता।
आज करोड़ों की संख्या में चौकीदार हैं लेकिन सब बस दरबार सजाने में लगे हैं। 
प्रधान सेवक के चौकीदार का सफर अब और आगे बढ़ चला है। 
सुना है जो दिल्ली की जनता.. अरे वहीं जनता जो मुफ्तखोर थी, जिसने आतंकवादी को मुख्यमंत्री चुन लिया था। उस जनता की ताकत को उप राज्यपाल के अंगूठे तले दबाया जाएगा। 
मैं तो सोचता हूं प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति को बैठा देना चाहिए। लेकिन ऐसा संभव नहीं।
क्यों कि भारत अभी भी भारत है बस इसके कुछ हिस्से पाकिस्तान हुए हैं।
-पीयूष चतुर्वेदी

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