सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, March 21, 2021

परिधान और संस्कार

परिधान यदि संस्कार की पूंजी है। संस्कार की पहचान है तो...
क्यों घूंघट में सिमटी महिला स्वतंत्र नहीं? घूंघट की हल्की सरक क्यों कर देती है उसका मैला आंचल? 
क्यों नंगे बदन घूमता पुरुष कहा जाता है कूल डूड.. हैंडसम? और कम कपड़े पहने महिला बेहया? 
क्यों खद्दर में लिपटे राजनेताओं में नहीं झलकती इमानदारी और भ्रष्टाचार रूपी सेवा में कर जाते देश को खोखला? 
क्यों संस्कार विहिन राष्ट्र जो हमसे भी कम और बेठंगा कपड़ा पहनते हैं वो आज भी हैं हमसे विकसित?
-पीयूष चतुर्वेदी

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