सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, March 24, 2021

व्यवहार में आस्था

धर्म में हमारी आस्था जितनी प्रगाढ़ है। 
जिवन व्यवहार में उतनी हीं कमजोर।
लेकिन एक समानता है।
श्रद्धा की अनुपस्थिति दोनों स्थान पर समान है।
अपनी शारीरिक अशुद्धि, छल,कपट,पाप को गंगाजली और स्नान से तो हम धो लेते हैं। 
लेकिन व्यवहार की खटास, भीतर पनपता द्वेष,मन को शिथिल करते अहंकार को किसी पावन जल से ना मिठा कर पाने की विधि है। ना उनके साथ प्रेम का प्रवाह है। फिर अहंकार की मूर्ति तो पिघलने से रही। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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