सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, March 29, 2021

होली

उदास चेहरे पर लिपटे सारे अंजान रंग कुछ पल के लिए हमें धर्म, जाती, संप्रदाय एवं राजनीतिक बाधाओं से मुक्त कर देती हैं। 
हम उन रंगों के साथ एक हो जाते हैं। बधाइयां भी समस्त देशवासियों के रूप में निकलकर हमारे बीच पहुंचती है। 
वास्तव में होली हमारी उपस्थिति को पूर्ण करती है। हमारे अधूरे ज्ञान को रंगों से भरती है। हमारे स्वभाव को आकाश में उभरते इंद्रधनुष की भांति निखारती है। हमारे मुख पर प्रेम की गुलाबी छटा बिखेरती है।
हमें ऐसा हीं बने रहना था हर पल,हर क्षण जैसे हम होली के दिन बनते हैं। पूर्ण... मानवता और प्रेम के रंग में लीपे-पुते से।
जहां थोड़ी कपट झलकना भी चाहे तो चेहरे पर लिपटा रंग हमारे चेहरे के उड़े रंग को भर दे। हमें प्रपूर्ण कर दे।
-पीयूष चतुर्वेदी

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