सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, August 9, 2021

शिकंजा

हम क्या देखना चाहते हैं? यह स्वयं में एक वृहद प्रश्न है। और ज़बाब यह है कि हम जो देखना चाहते हैं वो हम नहीं देख सकते। हाथ में कितने हीं मंहगे टीवी का रिमोट कंट्रोल क्यों न हो। यह प्राणघातक हमला है हमारे विचारों पर। यह मजबूत शिकंजा है हमारी मुक्तता पर। जहां मनःस्थिति परिस्थिति की ग़ुलाम है। हमारे देखने की सीमा हमें दिखाने वालों ने तय कर रखी है। जैसे..दिशा रवि और प्रियदर्शिनी में हमें क्या देखना था? हमनें क्या देखा? हमारे देखने और हमें दिखाने में हमारा देखना नित्य प्रति हार रहा है और हम थक कर सो जा रहें हैं। जैसे दिशा के मुद्दे को दिशाहीन साबित कर उसे आतंकी बता देना और प्रियदर्शिनी के दर्शन हर रोज प्राइम टाइम में कराना। वास्तविक सच्चाई यह है कि हमारे देखने की क्षमता कम नहीं हुई लेकिन दिखाने वाले कि शक्ति अति प्रबल और बिकाऊ है। शायद यहीं कारण है कि सर्वश्रेष्ठ न्यूज चैनलों पर मुद्दे आम जनता से जुड़े नहीं लखनऊ गर्ल से जुड़े हुए हैं।
-पीयूष चतुर्वेदी
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