सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, February 10, 2022

शून्य की ओर


हमारा जन्म वास्तव में लड़ने के लिए होता है। दोस्ती का हम मात्र नाटक करते हैं।  
नाटक इसलिए की हमें कोई जानवर ना कह सके।
दो पैर और चार पैर वालों के मध्य अंतर बरकरार रहे।
व्यवहारिक विपन्नता की संपन्नता को विक्षुब्ध सोच से सदैव हराया है।
सामाजिकता की ओस में दानवता के जीवंत बाढ़ को छुपाने के लिए। 
लेकिन हमारे झूठ का बादल फट जाता है और सारा पानी हमारे घर में प्रवेश कर जाता है।
फिर हम पेड़ों की टहनियों को पकड़े ऊंचाई की‌ ओर भागते हैं। 
कोई जरूरतमंद आकर उन टहनियों को काट ले जाता है। हम फिर बहते हुए चले जाते हैं शून्य की ओर।
-पीयूष चतुर्वेदी

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