सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, March 2, 2022

आंख खोल कर तैरते हैं

स्टीमर चलने से नाव की सवारी का बहुत समस्या हो गया होगा? 
नहीं इहां हरदम नाव चलता रहेगा। 
भगवान राम को हम लोग नदी पार कराएं थे। उन्हीं का आशीर्वाद है जब ले गंगा मैया बहेंगी तब ले नाव चलता रहेगा।
वापसी में नाव का चालक ने अपने ज़बाब में कहा। 
दूसरी छोर पर कुछ श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति में स्नान करने गए थे। 
कुछ अपनी हुड़दंग की छाप छोड़ शराब का सेवन कर तत्परता से अपने पाप को धोने की क्षुधा लिए गंगा जी में डुबकी लगा रहे थे। 
मांझी से बालू नाव में फेंकने पर हल्की बहस हुई। झुंड़ ने अपने रूआब में उसे हड़काने की कोशिश की पर पानी का दोस्त उनसे लड़ता रहा। 
कुछ हीं पल में एक सोने की चैन और अंगुठी झुंड़ से अलग हो गई। जिसके गले और ऊंगली से अलग हुई वो भागता हुआ चालक के पास आया। 
शायद उसे विश्वास था कि जलमित्र जल में मिश्रित हर वस्तु तो अलग कर उसे भेंट कर सकता है परंतु केवट का ग़ुस्सा सिर्फ जल को देख शांत अपने नाव में लेटा रहा। 
फिर अपने सहकर्मियों से अपने सही का सबुत पेश करता रहा। 
देखला हो पहिले बकचोदी करत रहन सन अब कहत हैन भैया मदद कर दिजिए। 
देखिएगा भैया हमीं लोग को मिलेगा ऊ।
पानी का समान किसी को नहीं मिलने वाला।
पानी पर हमीं लोग का हक होता है। 
जाल लगाएंगे न तो सब निकल जाएगा।
नहीं तो आंख खोल के तैरेंगे तो सब दिखाएगा।
देखिएगा हमको याद है जगह कल मिल जाएगा।
पानी में आंख खोल तैरने में तो समस्या होती होगी? 
नहीं पहिले होता था। शुरू-शुरू में।
हम लोग मछली खाते हैं। मछली से आंख मजबूत होता है। रोशनी बढ़ता है। 
गुरु तुम हमारा चश्मा देख के हमीं को लपेट लिए?
नहीं भैया सही में होता है। हम लोग सब खाते हैं। 
देखिए आंख खोल कर तैरते हैं। 


इस छोर से उस छोर में जिवन का हर छोर हमारी ओर ताक रहा था। 
प्रेम
स्नेह
मित्रता
क्रोध
ईश्या
छल
माया
मिट्टी
मोक्ष 
सभी गंगा में तैर रहे थे।
किसके थे?
किसके हैं?
किसके रहे होंगे? 
अंतर कर पाना मुश्किल था।
-पीयूष चतुर्वेदी।

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