धूप, छांव
धरती, नदी
पवन, आकाश
मैं, तुम, हम सभी आश्चर्य हैं।
देंह को स्पर्श करती हर वस्तु आश्चर्य है।
आंखों में उतरती हर छाया आश्चर्य है।
-पीयूष चतुर्वेदी
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
मैं आज चिड़िया घर दूसरी तीसरी बार गया था। जब पहली बार गया लखनऊ के चिड़िया घर में गया था उस समय पक्षियों के होने या ...
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