सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, April 27, 2022

अब मुझे गांव होना है

सड़कों पर जानवर हैं। दो पैर वाले,चार पैर वाले। दो पैर वालों को जल्दी है घर जाने की। चार पैर वालों को इत्मिनान है सड़कों के शांत हो जाने की। सड़कों को खुशी है वापस जंगल हो जाने की। शहर की अपनी उत्सुकता है शांति लिए निंद में सो जाने की। शहर ने सड़क से कहा। अब मुझे गांव होना है। सड़क ने चार पैरों वाले जानवर से कहा। अब मुझे जंगल बनना है।चार पैरों वाले जानवर ने दो पैर वाले जानवर से कहा अब तुम घर जाओ हमें इंसान बनना है। तुमने पूरे दिन नाटक किया अब हमें सत्य को पाना है। वो सत्य जो हमारा था। वो सत्य जो तुमने छीन लिया। वो झूठ जिसकी आड़ में तुम इंसान बनने चले थे उस झूठ को गुम करना है। हम थोड़ी देर डटे रहे। उनसे हल्की बहस की फिर कल सुबह से दिनचर्या में बंधे नाटक की याद ने हमें थका दिया। हम घर आ गए। 
शहर गांव बन गया।
सड़क जंगल।
और चार पैर वाले इंसान।
 -पीयूष चतुर्वेदी

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