सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, April 27, 2022

रिश्तों की धूल को खिड़की की नहीं घोंसले की जरूरत होती है

घर में घोंसला का होना खिड़कियों के होने से ज्यादा जरूरी होता है।
बनते बिगड़ते घोंसलों को देख घर को संवारे रखने की धूल हमसे चिपकी रहती है। 
रिश्तों की धूल को खिड़की की नहीं घोंसले की जरूरत होती है। खिड़की की जरूरत चिड़िया को है वो भी बिना जाली वाली खिड़की की। हमें दरवाजे की जरूरत है। हम खिड़की से भागेंगे तो चिड़िया बन जाएंगे। चिड़िया दरवाजे से बाहर जाएगा तो इंसान बन जाएगा। चिड़िया को चिड़िया रहना है। इंसान को इंसान। हमें घोंसले से सिखना है और चिड़ियों को घर से।
-पीयूष चतुर्वेदी

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