बनते बिगड़ते घोंसलों को देख घर को संवारे रखने की धूल हमसे चिपकी रहती है।
रिश्तों की धूल को खिड़की की नहीं घोंसले की जरूरत होती है। खिड़की की जरूरत चिड़िया को है वो भी बिना जाली वाली खिड़की की। हमें दरवाजे की जरूरत है। हम खिड़की से भागेंगे तो चिड़िया बन जाएंगे। चिड़िया दरवाजे से बाहर जाएगा तो इंसान बन जाएगा। चिड़िया को चिड़िया रहना है। इंसान को इंसान। हमें घोंसले से सिखना है और चिड़ियों को घर से।
-पीयूष चतुर्वेदी
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