दो देंह
दो स्थान
दोनों को साथ देखना भी क्षणिक रहा।
एक मौन को प्राप्त दूसरा मौन के आसपास भटकता हुआ।
एक भागता हुआ तो दूसरा ठहर कर देखता हुआ।
एक नदी सा चंचल, दूसरा हवा सा शांत।
एक तकता हुआ, दूसरा रमता हुआ।
एक की शरारतें हंसी सजाए गुदगुदाती हुई, दूसरे की बदमाशियां क्षण भर के लिए चिड़चिड़ापन से सनी।
उस गुदगुदी और चिड़चिड़ापन में के मध्य चाहे जो हो लेकिन आरंभ और अंत में ममता मुस्कुरा रही थी।
#श्रीनय #अन्मय
दोनों #यथार्थ
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