-पीयूष चतुर्वेदी
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Wednesday, May 4, 2022
सत्य
कहीं हुई बातें कभी न कभी सत्य हो जाती है। यदि ना हो पाईं तो सत्यता के आसपास कहीं ज़रूर पहुंच जाती हैं। एक समय झूठ कभी सच के पास और सच कभी झूठ के पास अपनी परछाईं छोड़ जाता है लेकिन हर बार कोई गहरा अंधकार प्रकट हो जाती है और परछाईं समाप्त हो जाती है। और इसी क्षण अंधकार हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारे जीवन में अंधकार से भागते रहने का ज्ञान यहां प्रकाश से जीत जाता है। लेकिन कही हुई बातों की कोई परछाईं नहीं होती। जीवन से अंधकार का स्वच्छंद संबंध मात्र होता है। बातों का समय के साथ इंतजार होता है। इंतजार उन बातों को हमारे जीवन में अंगीकृत करने का अवसर प्रदान करता है। और अवसर प्राप्त होते हीं सत्य की प्राप्ति हो जाती है।
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