सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, May 23, 2022

हमारी दोस्ती का आधार दुख है

हैलो...

आप पीयूष चतुर्वेदी हैं?
बहुत खुबसूरत लिखते हैं आप।

धन्यवाद आपका।

आप पढ़ती हैं मेरा लिखा?
Https://itspc1.blogspot.com

मैं भी यहीं लिखती हूं। अक्सर आपका पेज पर आती हूं।
सारा कुछ नहीं लेकिन बहुत कुछ पढ़ा है। 

कितना कुछ?

कुछ आपका लिखा मुझे मेरा जीया हुआ सा लगता है। और कुछ आपका लिखा मैं उसे पढ़कर जी लेती हूं।

हां देखा मैंने जीने में बड़ी समस्या है आपको? सांसों के साथ आपका संबंध अच्छा नहीं।

आपने कब देखा? 

आपके प्रोफ़ाइल पर लगा है।
Dear death come into my life I am always waiting for u.

नहीं, मेरा सांसों के साथ संबंध कैसा भी हो कोई फर्क नहीं पड़ता। फ़र्क यह पड़ता है कि जीवन का सांसों के साथ कैसा संबंध है? 

कैसा संबंध है? 

बहुत बुरा जीवन बहुतों से उनकी सांसों को छीनता है।
हमें लगता है जब तक हमारी सांसें चल रही हैं हम जिंदा है लेकिन ऐसा नहीं होता। 
हमारे अपनों की सांसें हमें खुलकर जीने में मदद करती हैं। हम जो क्षण प्रसन्नता से जीते हैं बस उसी पल में हम जीते हैं। 
अपनों की सांसों से हम खुलकर जीते हैं और अपनी सांसों में घुट-घुट कर। 

क्या आप जी रही हैं? 

नहीं मैं घुट-घुट कर जी रही हूं। या कुछ अलग कहूं तो मैं घट रही हूं। 
जैसे कोई घटना घटती है।
और मुझे आपको पढ़कर ऐसा लगता है जैसे उन घटनाओं को किसी ने छुपकर देखा है फिर कहीं लिख दिया है। और मैं उन्हें पढ़ लेती हूं। पढ़ने के बाद दूसरी घटना का इंतजार रहता है। 

मेरा लिखा आपको घटना लगता है? 

थोड़ा-थोड़ा हां।


आप मुझे जिती हैं या पढ़ती हैं? 

पता नहीं। लेकिन पढ़कर अच्छा लगता है। ऐसे जैसे कोई मेरे बारे में लिख रहा है। 

हां लेकिन मैं खुद के बारे में लिखता हूं। या अपना जीया हुआ लिखता हूं। महसूस किया हुआ पेपर पर उतारने की कोशिश करता हूं। 

आपको पता है मैं बहुत पहले आपको व्यक्तिगत तौर पर मैसेज करना चाहती थी। 

तो किया क्यों नहीं? 

सोचती थी पता नहीं कैसा लगेगा आपको? और कोई मुझे जज करे मुझे पसंद नहीं। 

मैं आपको जज क्यों करूंगा? 
पता नहीं लेकिन लोग करते हैं। 

तो आपने मुझे जज नहीं किया? 

करती अगर आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती तो शायद करती।

तो क्या जानती हैं मेरे बारे में? 

आपके लिखने में आपके जीवन के बहुत से रहस्य छुपे हुए हैं। काफी आसान है आपके बारे में जानना।
लोगों का नाम,पता, पसंद यह जानना उसे जानना नहीं होता। यह तो उसकी तलाशी लेना है। उसके जीवन के लम्हों में उसकी स्थिति को देख पाना हीं उसे जानना है।
जैसे सरकार हमारी तलाशी लेती है और मां-बाप हमें जानते हैं।
लेकिन आपने मुझे मैसेज क्यों किया? 
और शायद अगर आज आप नहीं करते तो भी मैं आपको मैसेज करती।

मैं शताक्षी के बारे में जानना चाहता था। उन्होंने ने हीं यह ग्रुप बनाया था। लिखने के संबंध में बात हुई थी एक प्रकाशन से लेकिन अब उनका कुछ पता नहीं। 
लेकिन आप आज हीं क्यों करतीं मुझे मैसेज? 

अच्छा, मैं उन्हें नहीं जानती लेकिन कोशिश करूंगी आपकी बात पहुंचाने की। 
पता नहीं लेकिन छोटी-छोटी यात्राएं अक्सर हमारी बड़ी यात्राओं को धूमिल कर देती हैं। http://itspc1.blogspot.com/2022/05/blog-post_12.html मैं उसी बड़ी यात्रा में गुम हो चुकी हूं। 
आपको पढ़कर लगा मैं गुम नहीं हुई हूं बस भटक गई हूं। लेकिन जो भी होता है अच्छे के लिए होता है।

हां अच्छा हीं हुआ नहीं तो यह बात,बात हीं रह जाती। 

लेकिन मेरा लिखा बहुतों को अच्छा नहीं लगता। कुछ तो बीच में हीं पढ़ना छोड़ देते हैं। कहते हैं बहुत अंधकार और सन्नाटा है मेरे लिखे में। 

डरते हैं वो लोग अंधकार से। और फिर सभी उसी अंधकार में सारे घिनौने काम करते हैं। और सन्नाटे में खुद को ढूंढते हैं।
आपके लिखे में अंधकार के साथ रोशनी भी है लेकिन रोशनी को प्राप्त करने के लिए अंतिम पंक्ति को प्राप्त करना पड़ेगा। लेकिन जिनका अंधकार में दम घुटता है उनका वहां तक पहुंचाना नामुमकिन है।
आपकी गर्लफ्रेंड पढ़ती है आपका लिखा? 

पता नहीं,कभी पूछा नहीं। 
पर कुछ छोटा लिखा उसे बहुत पसंद आता है। लंबा लिखा पढ़ने में थक जाती है।
वैसे मेरा आपसे एक निजी सवाल है? 

निजी कुछ भी नहीं होता। निजी सिर्फ झूठ होता है। 

लोगों को कहते सुना है निजी शब्द को। 

मैं नहीं मानती। 

कोई नहीं मेरा निजी सवाल मात्र इतना है कि आपके जीवन में कितना अंधकार है?

पिता थोड़ी रोशनी छोड़कर गए थे। मां अपने साथ पूरी रोशनी लेकर बादलों में गुम हो गई। अब बस रोशनदान रूपी छोटी बहन है और खिड़की जैसा भाई। बस इतनी सी रोशनी है। दरवाजे बंद हो गए हैं। 

मेरे जीवन में अब बहुत रोशनी है। कुछ वर्ष मैंने बहुत अंधकार में काटे थे।
मेरा भाई पिताजी के जाने के बाद मेरे लिए दरवजा बन गया। मां पूरा घर। मेरे घर में खिड़की, रोशनदान और दरवाजा तीनों से रोशनी आती है। मेरा स्याही वाला कमरा मुझे नई ऊर्जा से भर देता है।
आपको सुनकर मुझे मेरी दोस्त की याद आती है। 

क्यों ऐसा क्या है मेरी बातों में? 

तुम्हारी बातों में कुछ भी नहीं। लेकिन तुम्हारा अंधकार उसके अंधकार के करीब है। 

क्या नाम है उसका? 

ऐश्वर्या। उसके जीवन में अब दरवाजा नहीं है। खिड़की, दरवाजा के टूटने के एक वर्ष बाद हीं उजड़ गई। उसके जीवन में मात्र धुंधलाता उजियारा है। 
आप अब भी दोस्त हैं। 

हां,शायद हमेशा रहेंगे। 

क्यों? सुना है दोस्ती भी समय के साथ धुंधली हो जाती है? 

नहीं मात्र यादें धुंधली होती हैं। वो भी झेली हुई यादें धुंधली होती हैं। हमारा जिया हुआ अतीत हमेशा हमारे वर्तमान गुदगुदी करता है। पीड़ा भी भेंट करता है।
और हमारी दोस्ती का आधार दुख है। दुख पर भरोसा है मुझे। उसने मेरे प्रेम को बर्दाश्त किया है। क्रोध को अपनाया है और रूखेपन को आज भी हरा रखा है। जिसके लिए मेरा उसे धन्यवाद कहना अतीत को अपशब्द कहने जैसा प्रतीत होता है। उस दुख को और दुखी करने का कार्य लगता है। मैं उस दुख को मौन रहकर जीना चाहता हूं। 
दुख ने मुझे हमेशा अपनाया है। उसने मुझे कभी धोखा नहीं दिया। सुख का मेरे जीवन में उपस्थित क्षणिक है। इसलिए ऐश्वर्या हमेशा मेरी दोस्त रहेगी। हमें दुख ने दोस्त बनाया था। हमारी दोस्ती अंधकार के रास्ते पर आगे बढ़ी थी।

अच्छा है।
उम्मीद करूंगी कि मैं भी अंधकार के रास्ते पर आगे बढ़ती रहूं।
क्या हमारा दुख समान है? 

पता नहीं। इतनी जल्दी दुख का पता लगा पाना मुश्किल है। 
दुख हमारे जीवन में धीरे-धीरे घटता है। और लंबा घटता है। लेकिन दुख के घटने पर हमें दुख के और करीब जाना पड़ता है। 
और हम दुखी हैं इस बात का पता सिर्फ दुखी लोगों को होना चाहिए। 
वैसे आपने अपना नाम नहीं बताया। 

तमन्ना माथुर।

ओह!. माथुर , मथुरा से।

हा..हा.. पता था मुझे आप कुछ ऐसा हीं बोलने वाले हैं। मैं यह बोलने हीं वाली थी कि सभी माथुर मथुरा से नहीं होते। 

तो ये माथुर कहां से है? 

रामपुर।

सुना है वहां का चाकू बहुत प्रसिद्ध है? 

अब ऐसा कुछ भी नहीं। अब तो हर गली-मुहल्ले में क़त्ल हो रहे हैं। अब कत्ल प्रसिद्ध है चाकू नहीं। 

मुझे लगता है कत्ल नहीं दुश्मनी अधिक प्रसिद्ध है। 

कह सकते हैं क्योंकि भारत का पता नहीं लेकिन रामपुर में राम नहीं है। 
सुना है राम अयोध्या में हैं? 

मुझे लगा सरकारी वादों में हैं।

उन्हें तो हम सब के मन में होना था।

नहीं हैं। तभी तो अब रामपुरी चाकू प्रसिद्ध नहीं।

कह सकते हैं।

अच्छा है। आपसे बात करके अच्छा लगा। 

मुझे पता नहीं आपसे बात करके अच्छा लगा या नहीं? लेकिन आप अच्छे हैं।

अच्छा है। 

मैं चाहती हूं आप कुछ लिखें? 

क्या? 

मेरे लिए।
कुछ भी जो भी मन करे। बस इस लिखे में अंधकार की अधिकता ना हो। ना हीं रोशनी हो। बस जीया हुआ धुंधलापन हो। 

कोशिश करूंगा।

आप सच में अपनी यात्रा में भटके थे? 

हां यह सच है। मैं अक्सर भटक जाता हूं। 

भटक कर कैसा लगता है? 

लंबे समय के लिए स्थिर महसूस करता हूं।

भटक कर कोई स्थिर कैसे महसूस कर सकता है?

स्थिर होने के लिए मन को थकना पड़ता है। मैं मन को थकाता हूं। शरीर को स्वयं पर हावी नहीं होने देता। 

फिर मन क्यों भटक जाता है? 

मैं मन को मुक्त रखता हूं।

अच्छा लगा आपसे बात करके।

वाह!! काफी जल्दी अच्छा लगा। थोड़ी देर पहले तो मात्र लिखा हुआ अच्छा था।

ठीक है आप लिखिए। 

ठीक है मैं लिखूंगा।



-पीयूष चतुर्वेदी

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