सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, June 19, 2022

रात के १:३० बजे

रात के १:३० बजे। बिग बॉस ने याद नहीं किया था ना हीं रेखा भारद्वाज जी ने कोई गाना गाया।
विशाल भारद्वाज ने कोई संगीत भी नहीं लिखा।‌
२:३० बज रहा होता तो कल्पना की जा सकती थी। ऐसा कुछ घट जाने की।
यहां डाक्टर साहब ने प्याज का आपरेशन किया और मैंने इसे यथा संभव रूप दिया। वास्तव में डाक्टर कोई डाक्टर नहीं और ना हीं मेरे डाक्टर मित्र हैं। हां मित्र हैं जिन्हें मैं डाक्टर कहता हूं।
संभव में संकट यह था कि हमारे पास उतना हीं तेल था जितना गरीब किसान के खलिहान में सरसों और घी उतना था जीतना हमारे घर की सिंगारी गाय दूध देती थी। बाबा क्रोध में दम भर मार देते वह गिलास भर दूध। दूध और तेल का अंबानी की ग़रीबी और बाबा रामदेव की शुद्धता से कोई यथार्थ नहीं।
लेकिन पकौड़ी को उदरस्थ करते वक्त चपड़-चपड़ और उम्म का संगीत बज उठा है। वह संगीत किसी फिल्म में देखने या सुनने के लिए नहीं मिलेगा लेकिन उस संगीत में हृदय का तृप्त होना हर बार महसूस किया जा सकता है।
तेल और घी दोनों को साथ मिलाकर विशेष व्यंजन तैयार किया जा सकता है का बोध हमें गौतम बुद्ध के थोड़ा करीब लेकर जा चुका है। 
मौसम गर्म है, रूपए की तंगी है इसलिए सारनाथ जाना अभी सपने जैसा है। पकौड़ी जितना आसान नहीं।
-पीयूष चतुर्वेदी

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