बाहर की मुक्तता भीतर की भूख से हर पल हारती है।
भीतर की भूख जब रसोई में स्थान लेगी तो आटों को फेंट कर खेला जाएगा या बनी बनाई रोटी का स्वाद चखा जाएगा? यह सभी के लिए आश्चर्य है। 
आश्चर्य यह है कि इन्हें भूख रोटी कि है या खेलने की।
आजाद यह इस सीमा तक है और भीतर इनकी आजादी है।
और इनकी आजादी सभी के आश्चर्य। 
-पीयूष चतुर्वेदी 
  
No comments:
Post a Comment