जीवन से जुड़े कुछ किरदारों से मैं किसी प्रकार का लगाव महसूस नहीं कर पाता।
अतीत की यादों में गोते लगाने पर मानों ऊसर और स्वार्थी व्यक्तित्व हाथ लगता है। जिसकी मेरे साथ कोई भी मिठी याद नहीं जुड़ी।
मानों उसके हर अपनेपन में चालाकी भरा लोभ हो। अक्सर जब कभी मैं अतीत की यात्रा में होता हूं तो वहां प्रवेश करते हीं मैं असाधारण तौर से बड़ा हो जाता हूं। जबकि वास्तव में मुझे छोटा होना था ठीक उतना जीतना मैं अतीत में था। मेरा बड़ा होना मेरे सरल स्विकायर्ता को चोट पहुंचाता हुआ आगे भागने लगता है। उस बड़े होने में मैं गुणा,भाग करने लग जाता हूं और शून्य को हाथ में लिए कल की तैयारी करता हूं।
शून्य साथ में होने पर मैं छोटा होता हूं या बड़ा हो जाता हूं इसका ठीक-ठीक ज़बाब ढूंढ़ना मुश्किल है लेकिन मेरी सांसें सामान्य होती है।
उस सामान्य स्थिति में कल का आना आज के शून्य से भरा होता है जो उसे कल से मिला था।
उस कल में जाकर मैं आज वाली बात कहना चाहता हूं परन्तु आज के शून्य को शांति पसंद है।
शांति सभी को पसंद है।
लेकिन शांत रहना नहीं। शांत रहने में खुद की बात को ना कह पाने का दुख है।
लोग दुख के साथ जीने में डरते हैं लेकिन दुख मेरा साथी है।
मुझे दुख ने पाला है।
-पीयूष चतुर्वेदी
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