सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, August 17, 2022

शून्य का साथ

जीवन से जुड़े कुछ किरदारों से मैं किसी प्रकार का लगाव महसूस नहीं कर पाता।‌
अतीत की यादों में गोते लगाने पर मानों ऊसर और स्वार्थी व्यक्तित्व हाथ लगता है। जिसकी मेरे साथ कोई भी मिठी याद नहीं जुड़ी।
मानों उसके हर अपनेपन में चालाकी भरा लोभ हो।‌ अक्सर जब कभी मैं अतीत की यात्रा में होता हूं तो वहां प्रवेश करते हीं मैं असाधारण तौर से बड़ा हो जाता हूं। जबकि वास्तव में मुझे छोटा होना था ठीक उतना जीतना मैं अतीत में था। मेरा बड़ा होना मेरे सरल स्विकायर्ता को चोट पहुंचाता हुआ आगे भागने लगता है।‌ उस बड़े होने में मैं गुणा,भाग करने लग जाता हूं और शून्य को हाथ में लिए कल की तैयारी करता हूं। 

शून्य साथ में होने पर मैं छोटा होता हूं या बड़ा हो जाता हूं इसका ठीक-ठीक ज़बाब ढूंढ़ना मुश्किल है लेकिन मेरी सांसें सामान्य होती है। 
उस सामान्य स्थिति में कल का आना आज के शून्य से भरा होता है जो उसे कल से मिला था। 
उस कल में जाकर मैं आज वाली बात कहना चाहता हूं परन्तु आज के शून्य को शांति पसंद है। 
शांति सभी को‌ पसंद है।
लेकिन शांत रहना नहीं। शांत रहने में खुद की बात को ना कह पाने का दुख है। 
लोग दुख के साथ जीने में डरते हैं लेकिन दुख मेरा साथी है।
मुझे दुख ने पाला है। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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